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बाजरा की नवीनतम प्रजातियां

बाजरा की नवीनतम प्रजातियां : (A) अधिक पानी चाहने वाली किस्में: 1. रासी 1827 (Rasi 1827 Bajra seed) इसकी औसत पैदावार 35 क्विंटल/हैक्टेयर तक हो सकती है I ये किस्म तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लेती है I  2. बायर 9444 ( Bayer Proagro 9444 Bajra seed) ये किस्म तैयार होने 80 से 85 दिन का समय तैयार होने में लेती है I यह किस्म जायद और खरीफ दोनों में बोई जा सकती है I ये किस्म प्रति हेक्टेयर 30 से 35 क्विंटल की पैदावार दे सकती है । 3. हाइब्रिड पूसा 145 (Pusa 145 bajra seed) पूसा संस्थान द्वारा इजाद की गई बाजरा की हाइब्रिड किस्म है I यूनिवर्सिटी के अनुसार 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है I इसके साथ साथ 80 क्विंटल सुखा चारा हमें मिलता है I यह किस्म 70-80 दिन में पककर तैयार हो जाती है I 4. कावेरी सुपर बॉस बाजरा ( Kaveri super Boss Bajra seed) यह भी बाजरा की ज्यादा पानी की मांग करने वाली किस्म है I यह किस्म प्रति हेक्टेयर 32 क्विंटल की पैदावार दे सकती है I 5. श्री राम 8494 ( Shree Ram 8494 bajra seed) श्री राम 8494 बाजरा भी ज्यादा पानी की मांग करने वाली किस्म है I बाजरा की ये किस्म प्र...

बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए उपाय

बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए उपाय इन दिनों पानी की कमी एवं हानिकारक रसायनों का अत्यधिक उपयोग करने से कृषि योग्य भूमि धीरे-धीरे बंजर होती जा रही है। इस समस्या से बचने के लिए एवं बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा आए दिन कई शोध एवं प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ शोधों के अनुसार रसोई का कचरा भूमि को उपजाऊ बनाने में बहुत कारगर साबित हुआ है। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ डिकम्पोजर भी ईजाद की गई हैं। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। रसोई का कचरा बंजर भूमि को कैसे बनाता है उपजाऊ? रसोई का कचरा यानी फल-सब्जी के छिलके, बचे हुए भोजन, आदि गलने के बाद अम्लीय हो जाता है। क्षारीय भूमि में इसे मिलाने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है। जिससे मिट्टी उपजाऊ होने लगती है। भूमि को उपजाऊ बनाने में जिप्सम का महत्व बंजर भूमि या कम उपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने में जिप्सम का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि जिप्सम की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत कम होनी चाहिए। भूमि को अधिक उपजाऊ बनाने का अचूक उपाय कृषि योग्य भूमि को अधिक उ...

जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का महत्व

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जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का महत्व जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का विशेष महत्व है। यह एक तरह का फफूंद है जो खेत की मिट्टी एवं पौधों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसलिए इसे मित्र फफूंद भी कहा जाता है। यह कई तरह के होते हैं। ट्राइकोडर्मा के विभिन्न किस्मों में ट्राइकोडर्मा विरिडी एवं ट्राइकोडर्मा हर्जियानम सबसे ज्यादा प्रचलित है। कृषि में ट्राइकोडर्मा का बहुत महत्व है। अनेक फायदों के बाद भी कई किसान ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल, इसके लाभ, उपयोग करते समय सावधानियां, आदि जानकारियों से अनजान हैं। अगर आप भी ट्राइकोडर्मा के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है? #  विभिन्न कृषि कार्यों में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किया जाता है। # खेत तैयार करते समय मिट्टी उपचारित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। #  इससे बुवाई से पहले बीज उपचारित किया जाता है। #  मुख्य खेत में रोपाई से पहले नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित किया ...

गेहूं की फसल में सरसों की खली की उपयोगिता

गेहूं की फसल में सरसों की खली की उपयोगिता  उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए गेहूं की खेती करने वाले किसान फसल में रासायनिक खाद के तौर पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, आदि का प्रयोग करते हैं। वहीं जैविक खेती को प्राथमिकता देने वाले किसान अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद एवं वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग करते हैं। इन सब के अलावा सरसों की खली भी एक पौधों के लिए एक बेहतरीन उर्वरक है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं कि गेहूं की फसल में सरसों की खली का प्रयोग करने की विधि एवं इसके फायदों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। गेहूं की फसल में सरसों की खली का उपयोग करने की विधि एवं मात्रा # प्रति एकड़ खेत के लिए 5 से 6 किलोग्राम सरसों की खली को 4 दिनों तक पानी में भिगो कर रखें। # इसके बाद भिंगोई गई सरसों की खली को 150 लीटर पानी में मिलाएं। # गेहूं की फसल में सिंचाई के समय इसका प्रयोग कर सकते हैं। # इसके अलावा 25 से 30 दिनों की गेहूं की फसल में 150 लीटर पानी में 500 ग्राम सरसों की खली के साथ 200 ग्राम यूरिया मिला कर फसल में छिड़काव भी कर सकते हैं। सरसों की खली में मौजूद पोष...

केंचुआ खाद / वर्मीकंपोस्ट : मृदा क्षमता और मृदा उर्वरता बड़ाने का आसन तरीका

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केंचुआ खाद / वर्मीकंपोस्ट : मृदा क्षमता और मृदा उर्वरता बड़ाने का आसन तरीका वर्मीकम्पोस्ट को केंचुआ खाद भी कहा जाता है। हल्के काले और दानेदार वर्मीकम्पोस्ट में कई पोषक तत्वों के साथ कुछ हार्मोंस और एंजाइम्स भी होते हैं। इसमें किसी तरह की बदबू नहीं होती है, जिससे मच्छर एवं मक्खियां नहीं पनपते हैं। मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि, उच्च गुणवत्ता की फसल, पैदावार में बढ़ोतरी, आदि कई कारणों से जैविक कृषि में केंचुआ खाद का एक विशेष स्थान है। आइए वर्मीकम्पोस्ट से होने वाले लाभ पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। साधारण कम्पोस्ट की तुलना में केंचुआ खाद में अधिक मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसमें गोबर की खाद की अपेक्षा अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश पाया जाता है। वर्मीकम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाता है। करीब 2 से 3 महीने में हम उच्च गुणवत्ता की खाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है। इसके प्रयोग से मिट्टी की भौतिक संरचना में परिवर्तन होता है और मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। इसके प्रयोग से मिट्टी ...

आलू बोने से पहले बीज उपचार क्यों-कैसे करें?

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आलू बोने से पहले बीज उपचार क्यों-कैसे करें?  आलू बीज व बोये जाने वाले खेत में रोग संक्रमण की भरपूर संभावनाएं रहती हैं। बुवाई पूर्व आलू बीज को उपचारित करना अत्यंत आवश्यक है। बिना बीज उपचार के कभी भी आलू की बुवाई नहीं करनी चाहिए। आलू को संक्रमित करने वाले बहुत से रोग जनक आलू बीज पर मौजूद रहते हैं व फसल की बुवाई के साथ ही संक्रमण कर आप की फसल को चौपट कर सकते हैं।  1. चेचक रोग (काला स्कर्फ): यह मिट्टी में मौजूद राइजोक्टोनिया सोलानी नामक कवक के कारण होने वाला रोग है। अत: मृदा और संक्रमित बीज ही इस रोग का मुख्य स्रोत हैं। इसे तना कैंकर और ब्लैक स्कर्फ नाम से भी जाना जाता है। ब्लैक स्कर्फ से संक्रमित कंद की सतह पर छोटे से बड़े, गहरे काले डॉट्स-बिंदु दिखाई देते हैं। जिसे नाखून से आसानी से निकाला जा सकता है। कवक का  संक्रमण आलू के अंकुरों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है। जिससे अंतिम उपज में भारी गिरावट आती है। अधिकांश यूरोपीय देशों में, आलू के उत्पादन के लिए ब्लैक स्कर्फ गंभीर चिंता का विषय हैं। इस आलू बीज एवं भूमि जनित रोगों के प्रसार को रोकने और आलू फसल के उचि...

पंचगव्य प्रस्तुति विधि एवं मन्त्र

पंचगव्य प्रस्तुति विधि एवं मन्त्र पंचगव्य घटक - अधिक गुणवत्ता वाली पञ्चगव्य की विधि बताया गया है। सर्व सुलभ न होने पर कम से कम देशी प्रजाति गाय के पंचगव्य ही उपयोगी है। ( जर्सी या होलिश्तिन कभी नहीं )। दूध -  सफ़ेद देशी गाय = १६ भाग गोमय रस - काली देशी गाय = १ भाग गौमूत्र - कपिला वर्ण देशी गाय  = २ भाग दही - कोई भी देशी गाय = ४ भाग घी - कोई भी देशी गाय = ५ भाग  कुशोदक  ( पूजा पाठ में उपयोग होने वाला कुश ( कुशा ) को जल में भिगो कर कुछ घंटे रखें  और बाद में  पानी को आवश्यकता अनुसार उपयोग करें ) मात्रा - स्वस्थ व्यक्ति २५ से १०० मि.ली. एवं रोगों में वैद्यकीय सलाह अनुसार ।         पंचगव्य बनाने हेतु गव्य मिलाते समय निम्न मंत्र का पठन करते हेतु मिलाने से पंचगव्य का प्रभाव बढ़ जाता है।  *1. गौमूत्र  गोमूत्रं सर्वशुद्धयर्थं पवित्रं पापशोधनं,  आपदो हरते नित्यं पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।  *2. गोमय रस  अग्रमग्रश्चरन्तीनां औषधीनां रसोदभवं,  तासां वृषभपत्नीनां पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।   *3. गौदुग्ध  पयः पूण्य...