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बाजरा की नवीनतम प्रजातियां

बाजरा की नवीनतम प्रजातियां : (A) अधिक पानी चाहने वाली किस्में: 1. रासी 1827 (Rasi 1827 Bajra seed) इसकी औसत पैदावार 35 क्विंटल/हैक्टेयर तक हो सकती है I ये किस्म तैयार होने में 70 से 80 दिन का समय लेती है I  2. बायर 9444 ( Bayer Proagro 9444 Bajra seed) ये किस्म तैयार होने 80 से 85 दिन का समय तैयार होने में लेती है I यह किस्म जायद और खरीफ दोनों में बोई जा सकती है I ये किस्म प्रति हेक्टेयर 30 से 35 क्विंटल की पैदावार दे सकती है । 3. हाइब्रिड पूसा 145 (Pusa 145 bajra seed) पूसा संस्थान द्वारा इजाद की गई बाजरा की हाइब्रिड किस्म है I यूनिवर्सिटी के अनुसार 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है I इसके साथ साथ 80 क्विंटल सुखा चारा हमें मिलता है I यह किस्म 70-80 दिन में पककर तैयार हो जाती है I 4. कावेरी सुपर बॉस बाजरा ( Kaveri super Boss Bajra seed) यह भी बाजरा की ज्यादा पानी की मांग करने वाली किस्म है I यह किस्म प्रति हेक्टेयर 32 क्विंटल की पैदावार दे सकती है I 5. श्री राम 8494 ( Shree Ram 8494 bajra seed) श्री राम 8494 बाजरा भी ज्यादा पानी की मांग करने वाली किस्म है I बाजरा की ये किस्म प्र...

बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए उपाय

बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए उपाय इन दिनों पानी की कमी एवं हानिकारक रसायनों का अत्यधिक उपयोग करने से कृषि योग्य भूमि धीरे-धीरे बंजर होती जा रही है। इस समस्या से बचने के लिए एवं बंजर भूमि को फिर से उपजाऊ बनाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा आए दिन कई शोध एवं प्रयास किए जा रहे हैं। कुछ शोधों के अनुसार रसोई का कचरा भूमि को उपजाऊ बनाने में बहुत कारगर साबित हुआ है। इसके अलावा कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ डिकम्पोजर भी ईजाद की गई हैं। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। रसोई का कचरा बंजर भूमि को कैसे बनाता है उपजाऊ? रसोई का कचरा यानी फल-सब्जी के छिलके, बचे हुए भोजन, आदि गलने के बाद अम्लीय हो जाता है। क्षारीय भूमि में इसे मिलाने से मिट्टी की संरचना में सुधार होता है। जिससे मिट्टी उपजाऊ होने लगती है। भूमि को उपजाऊ बनाने में जिप्सम का महत्व बंजर भूमि या कम उपजाऊ भूमि को उपजाऊ बनाने में जिप्सम का महत्वपूर्ण योगदान है। लेकिन इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि जिप्सम की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत कम होनी चाहिए। भूमि को अधिक उपजाऊ बनाने का अचूक उपाय कृषि योग्य भूमि को अधिक उ...

जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का महत्व

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जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का महत्व जैविक खेती में ट्राइकोडर्मा का विशेष महत्व है। यह एक तरह का फफूंद है जो खेत की मिट्टी एवं पौधों के लिए बहुत लाभदायक होता है। इसलिए इसे मित्र फफूंद भी कहा जाता है। यह कई तरह के होते हैं। ट्राइकोडर्मा के विभिन्न किस्मों में ट्राइकोडर्मा विरिडी एवं ट्राइकोडर्मा हर्जियानम सबसे ज्यादा प्रचलित है। कृषि में ट्राइकोडर्मा का बहुत महत्व है। अनेक फायदों के बाद भी कई किसान ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल, इसके लाभ, उपयोग करते समय सावधानियां, आदि जानकारियों से अनजान हैं। अगर आप भी ट्राइकोडर्मा के विषय में जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस पोस्ट को ध्यान से पढ़ें। आइए इस विषय में विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किस लिए किया जाता है? #  विभिन्न कृषि कार्यों में ट्राइकोडर्मा का इस्तेमाल किया जाता है। # खेत तैयार करते समय मिट्टी उपचारित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता है। #  इससे बुवाई से पहले बीज उपचारित किया जाता है। #  मुख्य खेत में रोपाई से पहले नर्सरी में तैयार किए गए पौधों की जड़ों को ट्राइकोडर्मा से उपचारित किया ...

गेहूं की फसल में सरसों की खली की उपयोगिता

गेहूं की फसल में सरसों की खली की उपयोगिता  उच्च गुणवत्ता की फसल प्राप्त करने के लिए गेहूं की खेती करने वाले किसान फसल में रासायनिक खाद के तौर पर नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, जिंक, आदि का प्रयोग करते हैं। वहीं जैविक खेती को प्राथमिकता देने वाले किसान अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद एवं वर्मीकम्पोस्ट का प्रयोग करते हैं। इन सब के अलावा सरसों की खली भी एक पौधों के लिए एक बेहतरीन उर्वरक है। आइए इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं कि गेहूं की फसल में सरसों की खली का प्रयोग करने की विधि एवं इसके फायदों पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। गेहूं की फसल में सरसों की खली का उपयोग करने की विधि एवं मात्रा # प्रति एकड़ खेत के लिए 5 से 6 किलोग्राम सरसों की खली को 4 दिनों तक पानी में भिगो कर रखें। # इसके बाद भिंगोई गई सरसों की खली को 150 लीटर पानी में मिलाएं। # गेहूं की फसल में सिंचाई के समय इसका प्रयोग कर सकते हैं। # इसके अलावा 25 से 30 दिनों की गेहूं की फसल में 150 लीटर पानी में 500 ग्राम सरसों की खली के साथ 200 ग्राम यूरिया मिला कर फसल में छिड़काव भी कर सकते हैं। सरसों की खली में मौजूद पोष...

केंचुआ खाद / वर्मीकंपोस्ट : मृदा क्षमता और मृदा उर्वरता बड़ाने का आसन तरीका

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केंचुआ खाद / वर्मीकंपोस्ट : मृदा क्षमता और मृदा उर्वरता बड़ाने का आसन तरीका वर्मीकम्पोस्ट को केंचुआ खाद भी कहा जाता है। हल्के काले और दानेदार वर्मीकम्पोस्ट में कई पोषक तत्वों के साथ कुछ हार्मोंस और एंजाइम्स भी होते हैं। इसमें किसी तरह की बदबू नहीं होती है, जिससे मच्छर एवं मक्खियां नहीं पनपते हैं। मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि, उच्च गुणवत्ता की फसल, पैदावार में बढ़ोतरी, आदि कई कारणों से जैविक कृषि में केंचुआ खाद का एक विशेष स्थान है। आइए वर्मीकम्पोस्ट से होने वाले लाभ पर विस्तार से जानकारी प्राप्त करें। साधारण कम्पोस्ट की तुलना में केंचुआ खाद में अधिक मात्रा में पोषक तत्व मौजूद होते हैं। इसमें गोबर की खाद की अपेक्षा अधिक मात्रा में नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश पाया जाता है। वर्मीकम्पोस्ट जल्दी तैयार हो जाता है। करीब 2 से 3 महीने में हम उच्च गुणवत्ता की खाद प्राप्त कर सकते हैं। इसके उपयोग से मिट्टी की उर्वरक क्षमता में वृद्धि होती है। इसके प्रयोग से मिट्टी की भौतिक संरचना में परिवर्तन होता है और मिट्टी की जल धारण करने की क्षमता में बढ़ोतरी होती है। इसके प्रयोग से मिट्टी ...

आलू बोने से पहले बीज उपचार क्यों-कैसे करें?

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आलू बोने से पहले बीज उपचार क्यों-कैसे करें?  आलू बीज व बोये जाने वाले खेत में रोग संक्रमण की भरपूर संभावनाएं रहती हैं। बुवाई पूर्व आलू बीज को उपचारित करना अत्यंत आवश्यक है। बिना बीज उपचार के कभी भी आलू की बुवाई नहीं करनी चाहिए। आलू को संक्रमित करने वाले बहुत से रोग जनक आलू बीज पर मौजूद रहते हैं व फसल की बुवाई के साथ ही संक्रमण कर आप की फसल को चौपट कर सकते हैं।  1. चेचक रोग (काला स्कर्फ): यह मिट्टी में मौजूद राइजोक्टोनिया सोलानी नामक कवक के कारण होने वाला रोग है। अत: मृदा और संक्रमित बीज ही इस रोग का मुख्य स्रोत हैं। इसे तना कैंकर और ब्लैक स्कर्फ नाम से भी जाना जाता है। ब्लैक स्कर्फ से संक्रमित कंद की सतह पर छोटे से बड़े, गहरे काले डॉट्स-बिंदु दिखाई देते हैं। जिसे नाखून से आसानी से निकाला जा सकता है। कवक का  संक्रमण आलू के अंकुरों को गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त कर देता है। जिससे अंतिम उपज में भारी गिरावट आती है। अधिकांश यूरोपीय देशों में, आलू के उत्पादन के लिए ब्लैक स्कर्फ गंभीर चिंता का विषय हैं। इस आलू बीज एवं भूमि जनित रोगों के प्रसार को रोकने और आलू फसल के उचि...

पंचगव्य प्रस्तुति विधि एवं मन्त्र

पंचगव्य प्रस्तुति विधि एवं मन्त्र पंचगव्य घटक - अधिक गुणवत्ता वाली पञ्चगव्य की विधि बताया गया है। सर्व सुलभ न होने पर कम से कम देशी प्रजाति गाय के पंचगव्य ही उपयोगी है। ( जर्सी या होलिश्तिन कभी नहीं )। दूध -  सफ़ेद देशी गाय = १६ भाग गोमय रस - काली देशी गाय = १ भाग गौमूत्र - कपिला वर्ण देशी गाय  = २ भाग दही - कोई भी देशी गाय = ४ भाग घी - कोई भी देशी गाय = ५ भाग  कुशोदक  ( पूजा पाठ में उपयोग होने वाला कुश ( कुशा ) को जल में भिगो कर कुछ घंटे रखें  और बाद में  पानी को आवश्यकता अनुसार उपयोग करें ) मात्रा - स्वस्थ व्यक्ति २५ से १०० मि.ली. एवं रोगों में वैद्यकीय सलाह अनुसार ।         पंचगव्य बनाने हेतु गव्य मिलाते समय निम्न मंत्र का पठन करते हेतु मिलाने से पंचगव्य का प्रभाव बढ़ जाता है।  *1. गौमूत्र  गोमूत्रं सर्वशुद्धयर्थं पवित्रं पापशोधनं,  आपदो हरते नित्यं पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।  *2. गोमय रस  अग्रमग्रश्चरन्तीनां औषधीनां रसोदभवं,  तासां वृषभपत्नीनां पात्रे तन्निक्षिपाम्यहं।   *3. गौदुग्ध  पयः पूण्य...

किस माह में कौन सी सब्जियां उगानी चाहिए।

 *किस माह में कौन सी सब्जियां उगानी चाहिए। जनबरी माह के लिए*  राजमा, शिमला मिर्च, मूली, पालक, बैंगन, चप्‍पन कद्दू  *फरवरी माह में उगाई जाने वाली फसलें*   राजमा, शिमला मिर्च, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, फूलगोभी, बैंगन, भिण्‍डी, अरबी, एस्‍पेरेगस, ग्‍वार  *मार्च माह में उगाई जाने वाली फसलें*  ग्‍वार, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, खरबूजा, तरबूज, पालक, भिण्‍डी, अरबी  *अप्रैल माह में उगाई जाने वाली फसलें*  चौलाई, मूली  *मई माह में उगाई जाने वाली फसलें*  फूलगोभी, बैंगन, प्‍याज, मूली, मिर्च  *जून माह में उगाई जाने वाली फसलें*  फूलगोभी, खीरा-ककड़ी, लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, बीन, भिण्‍डी, टमाटर, प्‍याज, चौलाई, शरीफा  *जुलाई माह में उगाई जाने वाली फसलें*  खीरा-ककड़ी-लोबिया, करेला, लौकी, तुरई, पेठा, भिण्‍डी, टमाटर, चौलाई, मूली  *अगस्त*  गाजर, शलगम, फूलगोभी, बीन, टमाटर, काली सरसों के बीज, पालक, धनिया, ब्रसल्‍स स्‍प्राउट, चौलाई  *सितम्‍बर माह में उगाई ज...

श्रेष्ठ देशी काम धेनु नियन्त्रक तैयार करने की विधि।

श्रेष्ठ देशी काम धेनु नियन्त्रक तैयार करने की विधि। किसान देशी गाय को पाले । गोबर गैस टैंक बनाये। टेंक में गाय का गोबर व गो मूत्र घोल कर डाले। *पानी टेंक में नहीं डालना हैं।* अब टेंक से जो स्लरी बनेगी उसे एकत्रित कर  120 लीटर स्लरी को 200 लीटर खाली ड्रम में डाले।  इसमे निम्न प्रकार से अतिरिक्त सामग्री मिला  200 gm सोन्ध 50 gm। हींग 5 kg लहसुन 3 kg हल्दी 3 kg मिर्च (हरी) 1 kg बेसन 10 kg नीम पत्ती 5 kg धतूरा पत्ती 5 kg  करन्ज पत्ती 5 kg गाजर घास 10 kg दीमक टिल्ले की मिट्टी 10 kg  अग्निहोत्र भस्म 10 kg विभिन्न पौधों की पत्तियां (पपीता आम बेर बेल गोधल महुआ सोंझरी अलवीरा गिलोय हरी बहरा) उक्त सभी सामग्रियों को कट पीस करके ड्रम में डाले। इसे 60 दिनों तक रखे। प्रत्येक सप्ताह लकडी के डंडे से घोल को क्लॉक वाइज घुमाए। 60 दिनों बाद इसे छान लें। यह काम धेनु नियन्त्रक तैयार हैं। *काम धेनु नियन्त्रक का उपयोगिता * -3 लीटर काम धेनु कीट नियन्त्रक सब्जी के एक एकड़ के खेत के           लिये पर्याप्त है। स्प्रे कर सकते हैं।      (10 दिनों म...

फसलों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण, कारण और निवारण

* फसलों में पोषक तत्वों की कमी के लक्षण कारण और निवारण*   _जो किसान सिर्फ नाइट्रोजन (यूरिया), फॉस्फोरस और पोटाश ही देते हैं उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए किसानों को संतुलित पोषक तत्व देने चाहिए। कई बार पत्तियों की रंगत और पौधे खुद बताते हैं कि उनमें किस पोषक तत्व की कमी है।_   *मानव शरीर की तरह पौधों या फसल को भी पोषत तत्वों की जरूरत होती है। जो उनके उगने, बढ़वार और फिर फल देने में मददगार साबित होते हैं। वैज्ञानिकों के शोध के अनुसार पौधों के लिए 17 पोषक तत्व चाहिए होते हैं। इन पोषक तत्वों में सबसे अपने-अपने कार्य हैं।*  ज्यादातर किसान खेतों में डीएपी, एनपीके, यूरिया, पोटाश आदि डालते हैं। कुछ जागरूक किसान जिंक और दूसरे माइक्रोन्यूटेट (सूक्ष्म पोषकत्तवों) का इस्तेमाल करते हैं। इनमें से कई पोषक तत्व गोबर की खाद, हरी खाद या फिर केंचुआ खाद में होते हैं। जबकि कुछ को अलग से डालना पड़ता है। जो किसान सिर्फ नाइट्रोजन (यूरिया), फॉस्फोरस और पोटाश ही देते हैं उन्हें नुकसान उठाना पड़ जाता है। इसलिए किसानों को संतुलित पोषक तत्व देने चाहिए। कई बार पत्तियों की रंगत और ...

घनजीवाम्रत बनाने कि विधि (spnf)

घनजीवाम्रत बनाने कि विधि (spnf)     100किलो देशी गाय का गोबर      1किलो गुड       1किलो बेसन अच्छी तरह फावड़ा से मिलायें।  48से96घन्टा पतला बिछाकर कर सुखाये। दिन मे 2बार पलटें। अच्छी तरह सुखाने के बाद मोगरी से पिट ले। तत्पश्चात रेत छानने वाली छन्नी से छानने ले। जूट के बोरी मे भरकर रख ले। ध्यान रहे उक्त मात्रा केवल 1एकड के लिये है।  सावधानी बोरी के निचे लकड़ी पटिया अवश्य रखे। इसे एक वष॔ तक रख सकते है।         अथवा     200किलो सूखा गोबर छलनी से छना हुआ।  20 लीटर जीवामृत छिडके। 48 से96घन्टा सुखाये। तत्पश्चात जूट कि बोरी मे भर कर रखे। उक्त तैयार मात्रा एक एकड के लिये है। सावधानी जूट कि बोरी लकड़ी के पटिया पर रखे। एक वष॔ तक रख सकते है।  धन्यवाद्।

Rbljaivikkhad farm kiraoli Agra (vermicomposting business)

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खाद का बिजनेस (वर्मीकम्पोस्ट बनाने का व्यापर)  Vermicompost production business  केचुआ-300rs 1kg 8057176794 All over agra and native cities supply  8057176794 केचुआ खाद (vermicompost) एक प्रकार का जैविक खाद या उर्वारक है. जोकि केचुए और अन्य प्रकार के कीड़ो के द्वारा जैविक अवशिष्ट पदार्थो को विघटित करके बनाया जाता है. ये एक प्रकार की गंधहीन, स्वच्छ और कार्बनिक पदार्थ(Organic material) से बना खाद है. इसमें कई प्रकार की सूक्ष्म पोषक तत्व( Micro Nutrient Element) जैसे – नाइट्रोजन, कैल्शियम, पोटाश जैसे आवश्यक तत्व इसमें पाये जाते है. केचुआ खाद (Vermicompost) प्राकृतिक विधि से बने जाती है, इसीलिए इससे न ही खेतो को नुक्सान होता होता है और ना ही रासायनिक खाद का उपयोग जिससे खेतो की उर्वरक क्षमता बनी रहती है और खेत बंजर नही होते है. रासायनिक खाद का उपयोग ना करने से पर्यावरण भी सुरक्षित रहता है. केचुआ के द्वारा निगला गया घास, कचरा, गोबर, मिट्टी आदि को पचा कर ये मॉल के रूप में बाहर निकालता है. ये कार्बनिक पदार्थ पिसी हुई अवस्था में होती है उसे ही केचुआ खाद कहते है. केचु...

जैविक खेती में उपयुक्त होने वाले जीवाणु

माइकोराइजा   माइकोराइजा एक फंगस है। जिसका कार्य पौधों की जड़ो के बीच परस्पर सम्बन्ध बनाना होता हैं। माइकोराइजा पौधों की जड़ो में जाकर उसकी जड़ो का विकास करता हैं । माइकोराइजा से जड़ो की विकास से हमें क्या फायदा होता हैं। हम जब बोवनी करते है तो बोवनी में हम बीज के साथ साथ खाद और भी महत्वपूर्ण तत्व डालते हैं। मगर वो महत्वपूर्ण तत्व 40 से 50 प्रतिशत तक ही आपके पौधों को मिलता है क्यू की जड़ो का विकास एक सिमित मात्रा में ही बढ़ता है। और जो भी महत्वपूर्ण तत्व जड़ो के संपर्क में आती है वह तत्व ही पौधे को मिल पाते है माइकोराइजा पौधे की जड़ों का विकास करता है और उन्हें फैलाता है जिससे पौधे को अधिक से अधिक मात्रा में महत्वपूर्ण तत्व प्रदान होते हैं।  *माइकोराइजा के फायदे* : 01. जब हमारे पौधों को अधिक मात्रा में महत्वपूर्ण तत्व प्रदान होंगे तोह वह पौधा अधिक मजबूत और स्वस्थ होगा और पौधा सवस्थ होगा तोह उपज भी अधिक होगी।  02. हम जो खाद या महत्वपूर्ण तत्व जैसे सल्फर या अन्य तोह उसका पूरा लाभ हमारी फसल को मिलता है जिससे हमारा खाद और मेहनत दोनों बेकार नहीं जाती और हमे अच्छी उपज भी मिल...

1 एकड़ जैविक खेती प्लानिंग

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*1 एकड़ जैविक खेती प्लानिंग* ➖➖➖➖➖➖➖➖➖ *भूमि उपचार एवं बीज उपचार* अच्छे उत्पादन एवं उच्च गुणवत्ता युक्त फसल के लिए भूमि एवं बीज दोनों का उपचार आवश्यक है l भूमि उपचार करने से हमारे शत्रु कीट मर जाएंगे तथा मित्र कीटो में वृद्धि होगी और बीज उपचार करने से रोग ग्रस्त बीज अलग हो जाएंगे और अच्छे बिज़ हम अपनी खेती में डालेंगे तो परिणाम भी अच्छा मिलेगा l *Note* यदि आपको जैविक बीज न मिले तो, जैविक विधि से उपचार करके बीज लगाएं l 🌱 *पोषण प्रबंधन* 1️⃣ 10 क्विंटल केचुआ खाद+माईकोराईजा 2️⃣ 200kg माइक्रोन्यूत्रिंस खाद +टाईकोडरमा  (जिसमे सरसो कुसुम नीम करंज अरंडी महुआ समुद्री घास इत्यादि या घर के बचे अनाज जो वेस्ट हो गए हो After Decompoz) 3️⃣ 8 से 10 प्रकार की मित्र जीवाणु 4️⃣ वेस्ट डी कंपोजर, गौ कृपा अमृतम नियमित 7 दिन में 5️⃣ देशी गाय का दही एवं गाजर घांस स्वरस+जीवा अमृत घन जीवा अमृत उपलो का टानिक  🌱 *खरपतवार प्रबंधन* 1️⃣ पलेवा करके फसल लगाना 2️⃣ फसल छोटी हो तब हस्तचलित डोरे या कुलपे चलाएं 3️⃣ हाथ से निंदाई करने के बाद खरपतवार खड़ी फसल में उखड़कर खेत में ही छोड़ दें जो हरी खाद ए...

नाले की गंद vs केचुआ खाद

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खाद के नाम पर खाद ही ले नाले के गंद नहीं । बाज़ार में जैविक खाद के नाम पर दुकान दार सेवेज सेलरी अर्थात नाले की गंद को पैक करके बेच रहे हैं।  हमने आपने साथियों के साथ एक सर्वे किया जिस्म पता लगा कि ये जो जैविक खाद है वह दुकानदारों को 150rs / 40 kg में पड़ता है। जिसमे की सारे कर,उत्पाद खर्चा, लेबर , भड़ा आदि सम्मिलित है। और दुकान दार इसे अच्छे मुनाफे के साथ 300rs/40kg पर निकाल रहे। साधाणतया देखा जाए तो सभी करो को निकाल कर जैविक खाद ( सीवेज सैलेरी) की कीमत 3 /kg पड़ती है। जो की मिट्टी के भाव से भी कम है। सोचने के बात है 🤔🤔🤔🤔🤔🤔🤔 कि किसान यदि पुराना खाद (गोबर खाद ) लेने जाए तो 5 rs/kg आता है। फिर इसमें अन्य क्रिया जैसे सफाई लादाई लेबर केचुआ आदि डालने के बाद इसकी प्रोडक्शन मूल्य 10/kg आता है । तब किसान को समजने की बात है कि जैविक खाद के नाम पर नाले के गंद ना ले यह ना केवल खेती को खराब करता है बल्कि किसान मित्र कीटो को भी मारता है। दीमक जैसे फसल नासक कीटो आदि को बढ़ावा देती हैं। इसलिए फैसला आपके हाथ है आप नाले की गंद खाद के दाम खरीदे या खाद के दाम पर खाद खरीदे फैसला आपक...

बंजर खेतो को उर्वर एवं उत्पादक बनाने वाली संजीवनी बूटी - हरी खाद ( Green manure )

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बंजर खेतो को उर्वर एवं उत्पादक बनाने वाली संजीवनी बूटी -  हरी खाद ( Green manure )  💚💚   हरी खाद सबसे सरल व कम लागत वाली विधि है जिसके माध्यम से भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है। *इसके प्रयोग से भूमि में देशी केंचुओं की संख्या में वृद्धि होती है तथा फसलों के लिए आवश्यक सभी मुख्य व सूक्ष्म पोषक तत्वों, आर्गेनिक कार्बन, एंजाइम्स- विटामिन्स-हार्मोन्स, विभिन्न मित्र बैक्टेरिया व मित्र फंगस, आर्गेनिक एसिड्स आदि में वृद्धि होती है विशेष रूप से भूमि में नाइट्रोजन भंडारण होता है तथा हमारी भूमि उपजाऊ बनती है* । 💚💚किसान भाई कई वर्षों से लगातार अपने खेतों में रासायनिक खाद-उर्वरक तथा अन्य जहरीले रसायनो का प्रयोग कर खेती कर रहे है। गोबर की विभिन्न तरह की खादो व अन्य जैविक खादों का प्रयोग लगभग न के बराबर हो रहा है अथवा बंद कर दिया गया है। जिसके परिणाम स्वरूप हमारी भूमि में ऑर्गेनिक कार्बन, मित्र सूक्ष्म जीव,मित्र फंगस, आवश्यक पोषक तत्वों की कमी होती जा रही है। भूमि की भौतिक व रासायनिक संरचना बिगड़ चुकी है, जमीन का पोलापन कठोरता में बदल रहा है। भूमि में लवणीयता तथा क्षारीयता बढ़ ...

पपीते की बुआई एवम बाजार से जुड़े पहलू

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पपीते की बुआई एवम बाजार से जुड़े पहलू   पपीते की खेती (महत्वपूर्ण तथ्य) 1, 8 महीने में फल तोड़ सकते 2, कम पानी की आवश्यकता 3, सबसे कम लागत में तैयार, 4, नर का कोई झंझट नहीं 5, सभी पौधों पर भरपूर फल लगते हैं, 6, 2 साल भरपूर पपीते पाए 7, सामान्य फसलों से 4 गुना आमदनी,  बुवाई का समय एवम बाजार मूल्य गणना  जो किसान भाई फरवरी-मार्च अप्रैल में नहीं लगा सकते है तो उनके लिए समय अगस्त, से -नवंबर तक का समय उचित रहता है। मई-,जून , जुलाई, अगस्त में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि पपीते का बगीचा लगाने का सही समय अगस्त से-नवंबर है । अगर आपने फरवरी महीने में पपीते का बगीचा लगाया है तो अक्टूबर में फल पकना शुरू हो जाएगा, और आपने मार्च में पपीते का बगीचा लगाया है तो अगस्त से -नवंबर,  अगर अक्टूबर नवंबर मैं फल आरहा है तो ठंड की बजह से रेट काफी नीचे रहते है इसलिए आप लोग  अगस्त, से नवंबर में लगाए मार्च के बाद फल निकलना चालू हो जाता है किसान भाइयों को गर्मियों मैं रेट भी काफी अच्छा मिल जाता है  अभी मई चल रही है थोक पपीते का रेट 40 रुपये किलो जा रहा है ।  आप जुलाई मैं ...

दीमक नियंत्रण के जैविक उपाय

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दीमक नियंत्रण के जैविक उपाय   1. दीमक से बचाव के लिए खेत में कभी  भी कच्ची गोबर नहीं डालनी चाहिए। कच्ची गोबर दीमक का प्रिय भोजन होता है | 2. फसलों में दीमक की रोकथाम हेतु 2.5 से 5 किलो मेटाराइजियम 100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद में मिलाकर 72 घंटे संवर्धन करें जिससे माईसीलियम वृद्धि कर सके। इसे बुवाई से पूर्व या प्रथम निराई-गुड़ाई के बाद या खड़ी फसल में एक हैक्टेयर में बुरकाव कर सिंचाई करें । 3. बीजों को बिवेरिया बेसियाना फफूंद नाशक से  उपचारित किया जाना चाहिए। एक किलो बीजों को 20 ग्राम बिवेरिया बेसियाना फफुद नाशक से उपचारित करके बोनी चाहिए | इसके अलावा 2.5 किलो ब्यूवेरिया को 100 किलोग्राम सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट या केंचुआ खाद में मिलाकर 72 घंटे नमी की अवस्था में ढ़ंक कर रखें ताकि मासीलियम वृद्धि कर सके। तैयार संवर्धन का खड़ी फसल में भुरकाव कर सिंचाई करें। 1 किग्रा/एकड़ बिवेरिया बेसियाना फफूंद नासक को आवश्यकतानुसार पानी में घोलकर  सिचाई के समय देना चाहिए | 4.   नीम की सुखी निंबोली 2 किग्रा को कूटकर बुआई से पहले 1 एकड़ खेत में...

माँ धरती बचाओ अभियान

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मिट्टी की उत्पादकता बढ़ाने और फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए कौन से पोषक तत्व आवश्यक है। माँ धरती बचाओ अभियान  आइए पहले देखते हैं कि आज हम फसल को क्या दे रहे हैं 1. 10:26:26 -  N:P:K 2. DAP          -  NP        3. 12:32:16  - N:P:K 4. 0:52:34    - P:K 5. युरिया           - N इसका मतलब है कि हम फसल को केवल 3 मुख्य पोषक तत्व दे रहे हैं। हालांकि, फसल को कुल 16 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है 1. हवा से 3 प्राप्त होते है  - * कार्बन , हाइड्रोजन, ऑक्सीजन * 2. मुख्य पोषक तत्व  (3) - * नाइट्रोजन, पोटाश, फॉस्फोरस * . 3. माध्यमिक पोषक तत्व 3 - * कैलशियम, मैगनेशियम, सल्फर * 4. माइक्रोन्यूट्रिएंट 7 - * फेरस, जिंक, बोरोन, क्लोरीन, कॉपर, मोलिब्डेनम, मैंगनीज * उत्पादन में गिरावट का मुख्य कारण है की फसल को आवश्यक पोषक तत्व नहीं मिल रही है * मिट्टी की उर्वरता के लिए आवश्यक तत्व * 1. जीवाणु 2. केंचुए 3....

BLACK WHEAT 🌾/काले गेंहू/फायदे/रोगों से छुटकारा

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काले गेंहू  काला गेहूं आम गेहूं से कई गुना ज्यादा पौष्टिक है काला गेहूं तनाव, मोटापा, कैंसर, डायबीटीज और दिल से जुडी बीमारियों की रोकथाम में मददगार साबित होता है.आम गेहूं में जहां एंथोसाइनिन की मात्रा 5 से 15 पास प्रति मिलियन होती है, वहीँ काले गेहूं मे 40 से 140 पास प्रति मिलियन पायी जाती है.. यह शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालकर हार्ट, कैंसर, डायबिटीज, मोटापा और अन्य बीमारियों की रोकथाम करता है। इसमें जिंक की मात्रा भी अधिक है।  आइये जानते है इसके सेवन से होने वाले फायदे । तनाव : आज के समय में लगभग हर शख्स तनाव से पीड़ित है या इसका कही न कही सामना कर रहा है. तनाव से बाहर आने के लिए वह रोजाना नई -नई दवाईयों का सेवन करता है, जिसका परिणाम यह होता है कि कुछ समय के बाद जब इन दवाइयों का असर समाप्त होने लगता है तो पीड़ित इन्सान अपना रुझान नई दवायों की तरफ़ कर देता है, मतलब स्थिति और भी ख़राब होती चली जाती है। यहाँ काला गेहूं  तनाव जैसी इस भयानक बीमारी को समाप्त करने के लिए एक आशा की किरण लेकर आया है।शोध से यह पता चला है की तनाव से पीड़ित व्यक्ति पर इसके प्रयोग के बहुत ही सक...